हैदर गंज कड़ाह,बिहार~India
रज़ा ! जी हाँ रज़ा कादरी। मज़हबी,गरीब और इमानदार परिवार का बेटा (आप चाहें तो इसके आगे भी 'कुछ' लगा सकते हैं)। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ कहे जाने वाले बिहार के एक छोटे से गाँव हैदर गंज कड़ाह में मैं पैदा हुआ लेकिन पला-बढ़ा दिल्ली में। पर दिल रह गया गाँव में। घूमने-फिरने मतलब 'भटकने', खाने-पीने यानि कि 'चरने' और दोस्त मिल जाएँ तो बकते रहने का शगल कूट-कूट कर भरा हुआ है। accounts से बारहवीं करने के बाद लोगों को लगा था कि बिजनेस मैन बनूँगा या फिर CA बनकर लोगो के काले धन को सफ़ेद करूँगा। पर हम निकल आए दूजे रास्ते पर। पत्रकारिता से स्नातक की। उसी दौरान अनुवादक के रूप में हिंदी भाषा की सेवा भी कर ली। वहाँ से निकले तो टीवी और रेडियो पर बोलने का काम कर लेते हैं कभी-कभी। रंगमंच से लगाव था इसलिए अभिनय के संसार में भी मौका मिल गया। हिंदी और उर्दू में कुछ काम कर चुका हूँ। हालाँकि उर्दू आती तो नहीं,लेकिन साथियों और घर वालो की मदद से उच्चारण दोष के साथ काम चल जाता है। वैसे तो पूरे गाँव में किसी ने कला और साहित्य के उद्देश्य से कभी कलम नहीं चलाई, ना ही कभी मुझे कोई प्रोत्साहन मिला लेकिन फिर भी कीड़ा लगना था सो लग गया। कितना और कैसा ये फैसला आप करते रहें, मैं ठहरा गम्मती तो अपनी दिमाग़ी गम्मत यहाँ पर करता रहूँगा आप लोग साथ देते रहिएगा! गम्मत करने का ठिया बन गया है! अब होगी शानदार गम्मत!!!
रज़ा ! जी हाँ रज़ा कादरी। मज़हबी,गरीब और इमानदार परिवार का बेटा (आप चाहें तो इसके आगे भी 'कुछ' लगा सकते हैं)। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ कहे जाने वाले बिहार के एक छोटे से गाँव हैदर गंज कड़ाह में मैं पैदा हुआ लेकिन पला-बढ़ा दिल्ली में। पर दिल रह गया गाँव में। घूमने-फिरने मतलब 'भटकने', खाने-पीने यानि कि 'चरने' और दोस्त मिल जाएँ तो बकते रहने का शगल कूट-कूट कर भरा हुआ है। accounts से बारहवीं करने के बाद लोगों को लगा था कि बिजनेस मैन बनूँगा या फिर CA बनकर लोगो के काले धन को सफ़ेद करूँगा। पर हम निकल आए दूजे रास्ते पर। पत्रकारिता से स्नातक की। उसी दौरान अनुवादक के रूप में हिंदी भाषा की सेवा भी कर ली। वहाँ से निकले तो टीवी और रेडियो पर बोलने का काम कर लेते हैं कभी-कभी। रंगमंच से लगाव था इसलिए अभिनय के संसार में भी मौका मिल गया। हिंदी और उर्दू में कुछ काम कर चुका हूँ। हालाँकि उर्दू आती तो नहीं,लेकिन साथियों और घर वालो की मदद से उच्चारण दोष के साथ काम चल जाता है। वैसे तो पूरे गाँव में किसी ने कला और साहित्य के उद्देश्य से कभी कलम नहीं चलाई, ना ही कभी मुझे कोई प्रोत्साहन मिला लेकिन फिर भी कीड़ा लगना था सो लग गया। कितना और कैसा ये फैसला आप करते रहें, मैं ठहरा गम्मती तो अपनी दिमाग़ी गम्मत यहाँ पर करता रहूँगा आप लोग साथ देते रहिएगा! गम्मत करने का ठिया बन गया है! अब होगी शानदार गम्मत!!!
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